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लेखनी कहानी -08-Jul-2022 यक्ष प्रश्न 1

सास , जेठानी और छोटी बहू 


मैं आज सुबह सुबह अपने मोबाइल में आने वाले मैसेज देख रहा था कि अचानक मेरी नज़र एक मैसेज पर पड़ी । यह मैसेज तो कुछ जाना पहचाना सा लगा । तुरंत ध्यान आया कि यह तो मेरा ही एक लेख था जो मैंने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया था । उस लेख का नाम था यक्ष प्रश्न । उस लेख से मेरा नाम हटाकर बाकी जस का तस उसी को शेयर कर दिया गया था। 


सास, जेठानी और छोटी बहू

मुझे बड़ी खुशी हुई कि मेरा एक हास्य व्यंग्य का लेख जो मैंने फेसबुक पर पोस्ट किया था वह घूम फिर कर मेरे ही पास में आ गया था । उसे शेयर करने वाले मेरी ही कंपनी के एक सीनियर एक्जीक्यूटिव थे । हमारी संस्था में काम करने वाले अधिकारियों का एक ग्रुप बना हुआ था और उसी ग्रुप में वह मैसेज शेयर हुआ था ।


मैंने उस पर टिप्पणी की कि यह पोस्ट मेरी लिखी हुई है जो मैंने फलां दिन पोस्ट की थीं । फिर क्या था । मेरे साथियों के बधाई के मैसेज आने लगे । मुझे लगा कि उन सीनियर साथी का मैसेज भी आयेगा जिन्होंने उसे शेयर किया था । लेकिन उनका मैसेज नहीं आया । यह मेरे लिए आश्चर्यजनक घटना थी ।


मैं सोच में पड़ गया कि ऐसा क्यों हुआ होगा ? जो व्यक्ति किसी पोस्ट को शेयर कर रहा है तो इसका तात्पर्य यह है कि उसे वह पोस्ट बहुत अच्छी लगी थी और इस पोस्ट से वह पूरे समूह को लाभान्वित करना चाहता है । लेकिन जब उसे यह ज्ञात होता है कि यह पोस्ट उसके किसी जूनियर की है तो वह उसकी प्रशंसा तक नहीं करता है । जूनियर की प्रशंसा करना कोई अपराध है शायद ? जूनियर की तारीफ करने के लिए तो "रूल बुक" में भी नहीं लिखा है । इतना बड़ा दिल होता नहीं है सीनियर्स का कि वे अच्छे कार्य के लिए जूनियर्स की प्रशंसा करें । जितना बड़ा अफसर उतना छोटा दिल । शायद सीनियर्स समझते हैं कि जूनियर्स की तारीफ करने से वे छोटे बन जाएंगे । इसलिए कोई सीनियर जूनियर की प्रशंसा नहीं करता है ।


एक दिन हम लोग आफिस में लंच में मिले तो सब लोगों ने उस  पोस्ट के लिए मुझे फिर से बधाई दी और कहा कि "आप बहुत अच्छा लिखते हो । मजा आ जाता है आपकी रचनाओं को पढ़कर । इसी तरह आगे भी लिखते रहो" ।


मेरे वो सीनीयर जिन्होंने वह पोस्ट शेयर की थी , न केवल चुपचाप रहे बल्कि उन्होंने बातचीत का टॉपिक ही बदल दिया । मैं उनके इस व्यवहार से हतप्रभ था । 


थोड़ी देर में सब लोग चले गए और केवल मेरे मित्र हंसमुख लाल जी रह गए । मैंने अपने मन की पीड़ा उन्हें बताई तो वे ठहाका मारकर हंसे । मैं पुनः आश्चर्यचकित हुआ । ये हंसमुख लाल जी हंस क्यों रहे हैं ? 


थोड़ी देर में वे संयत हुए और बोले  "ये बड़े अधिकारियों का एक पैटर्न है । वे कभी अपने से बड़े अधिकारी की बुराई नहीं करते और अपना से छोटे अधिकारी की कभी प्रशंसा नहीं करते"।


एक बार मेरे इन सीनियर सज्जन का बच्चा कहीं खो गया था । मैंने बड़ी मेहनत करके उसे ढूंढ कर ला दिया । जब मैं बच्चे को लेकर इनके घर पहुंचा तो इन्होंने बैठाना तो दूर , धन्यवाद तक नहीं दिया और एक भी शब्द नहीं बोले । मैंने जब उनका ध्यान इस ओर आकृष्ट किया तो कहने लगे कि जूनियर की प्रशंसा करना उनके सिद्धांतों के खिलाफ है । मैं मन मसोस कर रह गया ।


कभी पुराने जमाने में किसी सास और जेठानी को अपनी छोटी बहू की बड़ाई करते देखा है क्या ? सास का धर्म था छोटी बहू में केवल खोट निकालना । खोट भी ऐसे ऐसे जो बहू में कभी थे ही नहीं । फिर भी सास उनके लिए उसे ताने मारती थी । उसके मैके वालों को दिन रात कोसती थी । इसी तरह जिठानी हमेशा सास की कृपा पात्र बनने के लिए छोटी बहू की बुराई सास से करती रहती थी और कहती रहती थी कि इसे तो कोई काम आता ही नहीं है । इसकी मां ने इसको कुछ भी नहीं सिखाया है । बौडम है बौडम । घर का सारा  काम बस जिठानी ही करती है ।


हद तो तब हो जाती जब  छोटी बहू के कुछ काम तो स्वयं जिठानी चुपके-चुपके से बिगाड़ जाती थी और सास से उसकी चुगली करके छोटी बहू को डांट लगवाती थी । बेचारी छोटी बहू खून के घूंट पीकर‌ रह जाती थी । यह देखकर जिठानी को बड़ा आनंद आता था । वह अपनी सास के और नजदीक हो जाती थी । पडौस की औरतों से सास अपनी जिठानी की प्रशंसा करते नहीं थकती थी मगर छोटी बहू की बुराइयों का हमेशा बखान करती रहती थी ।


 मुझे हंसमुख लाल जी की ये सब बातें बहुत अच्छी लगीं । जिंदगी में शायद उन्होंने पहली बार कोई समझदारी की बात की थी वरना तो वे हमेशा बकबक ही करते रहते हैं । 


मुझे एक वाकया याद आ गया । मेरी कंपनी में एक दिन मुझे मेरे बॉस ने बुलाया और कहा कि देखो फलां दिन अपने एम डी साहब आने वाले हैं । आप उनका सारा अरैंजमेंट करेंगे । मैंने कहा कि सर, जैसी आपकी आज्ञा । और मैं सारा अरैंजमेंट करने में व्यस्त हो गया । दिन भर की भाग दौड़ करने के पश्चात शाम को मैं जब बॉस के पास पहुंचा तो मेरे एक सीनियर भी वहीं पर बैठे थे । मैंने बॉस को अपने द्वारा किए गए सारे अरैंजमेंट बता दिए । मेरे सीनियर उसमें खोट निकालते रहे और बॉस को बताते रहे । बॉस भी उनकी बात मानकर मुझे निर्देश देते रहे । मैं उन्हें नोट करता चला गया । 


दूसरे दिन बॉस के निर्देशों के अनुसार सारा काम निपटा लिया और बॉस को बताने गया । बॉस ने सुनकर केवल इतना ही कहा कि ' ठीक है '। मुझे थोड़ा आश्चर्य हुआ कि बॉस ने मेरे काम की तारीफ नहीं की । 


तारीफ शब्द बॉस और बीवी  की डिक्शनरी में नहीं होता है शायद । 


मैं वापस आ गया । थोड़ी देर बाद मुझे पता चला कि बॉस ने एम डी साहब के लिए प्रोटोकॉल अधिकारी मेरे उन सीनियर को लगा दिया है जो उस दिन वहां पर बैठे थे और मेरे काम में मीन मेख निकाल रहे थे । मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि यह कैसे हुआ ?


मैं अपने केबिन में बैठा बड़बड़ा रहा था तभी मेरे मित्र ज्ञानी जी वहां आ गए और कहने लगे 


"इतना गुस्सा ठीक नहीं है मित्र । ये तो होना ही था । तुमने छोटी बहू की तरह मेहनत कर के सारा काम किया । तुम्हारे सीनियर एक जेठानी की तरह प्रकट हुए और तुम्हारी  सास यानी कि बॉस को ब्रह्मज्ञान दे आये । अब  सारा अरैंजमेंट तो तुम कर चुके थे इसलिए उनको करने को कुछ रह नहीं गया था ।  अतः अब सारा श्रेय लेने के लिए उन्होंने बॉस से कहकर अपनी ड्यूटी लगवा ली और महफ़िल लूट ली । घरों में जेठानियां भी ऐसे ही करतीं हैं । 


मैं मन ही मन बड़ा क्रोधित हुआ । मुझे अपने सीनियर जेठानी की तरह लगने लगे । कभी भी छोटी बहू की प्रशंसा नहीं करते । हरदम पीठ पीछे मेरी बुराई करते रहते हैं । सास यानी बॉस को हमेशा चुगली करते रहते हैं और विजय श्री का वरण करते रहते हैं । मुझे डांट लगवाते रहते हैं ।


मैं अब सारा माजरा समझ गया था । जो खुद रीती गागर हो वह औरों को जल कैसे दे सकती है ? ये लोग भी रीती गागर की तरह हैं जो येन केन प्रकारेण केवल लेना जानते हैं , देना नहीं । फिर जूनियर की प्रशंसा करने से जूनियर का रुतबा बढ़ जायेगा । जूनियर का बढा हुआ रुतबा किसी सीनियर को कैसे अच्छा लगेगा ?


इसी तरह घर में अगर छोटी बहू का रुतबा बढ़ जायेगा तो जेठानी को कौन पूछेगा ?


आज मैं भी यह गुरु ज्ञान जान गया हूं कि अगर सिस्टम में जगह बनानी है तो पहले सास को नहीं जेठानी की अकल  ठिकाने लगाना ज्यादा जरूरी है । उसके षड्यंत्रों को पहचान कर उनसे बचना ज्यादा जरूरी है ।


अब मेरा सारा ध्यान अपने काम पर नहीं अपितु सीनियर्स के काम पर रहने लगा । उनके कामों में अडंगा डालने लगा और बॉस से उनकी चुगली करने लगा । अपना अस्तित्व बचाने के लिए दूसरे का अस्तित्व डांवाडोल करना पड़ता है । सीनियर्स को महसूस हो गया है कि अब जूनियर्स दबने वाले नहीं हैं । धीरे धीरे सीनियर्स भी वदलने लगे हैं ।


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6 Comments

दशला माथुर

20-Sep-2022 11:27 AM

Very nice

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shweta soni

20-Sep-2022 12:29 AM

Nice post

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Chudhary

14-Jul-2022 10:27 PM

Nice

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